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आज के इस पोस्‍ट मे हम मध्‍य प्रदेश के विभिन्‍न जिलो के हाल ही मे समसमायिकी जानकारी के साथ ही सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं में मध्‍य प्रदेश सामान्य ज्ञान आधारित प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं। इस लेख में हम मध्‍य प्रदेश में होने वाली समसमायि‍क घटनाओं पर जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं जो विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र-छात्राओं के लिए काफी उपयोगी हैं। सभी प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं में अपने सामान्य ज्ञानको बेहतर बनाने के लिए इन जानकारी को पढने में समय जरुर देना चाहिए

💦हाल ही मे सर्वे के अनुसार मध्यप्रदेश के सबसे बडी जनजाति-

                         💨 भील जनजाति💨

मध्यप्रदेश में मालवा पर भील राजाओं ने लंबे समय तक शासन किया , आगर ,झाबुआ,ओम्कारेश्वर,अलीराजपुर पर भील राजाओं ने शासन किया ।भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के भील शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है- धनुष ! भीलो में धनुष बाण का अत्यधिक महत्व होता है इसलिए इनका नामकरण इसी के आधार पर किया गया है भील मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है जनगणना 2011 के अनुसार 4618068 इसकी जनसंख्या हैं 

मध्‍यप्रदेश मे भौगोलिक वितरण ⇛⇛⇛⇛
भीलो को राजपूत लोग राजस्थान के प्राचीन निवासी मानते हैं मध्यप्रदेश में भील जनजाति पश्चिमी क्षेत्र के झाबुआ खरगोन बड़वानी धार आदि जिलों में निवास करते हैं 
शारीरिक विशेषताएं ⇛⇛⇛
भील भूरे से गहरे रंग ,मध्यम सुगठित शरीर, बड़ी आंखें और चौड़े माथे एवं घुंघराले बाल होते हैं भील स्त्री पुरुष अन्य जनजातियों की तुलना में अधिकतर सुंदर होते हैं
निवास⇛⇛⇛⇛
भीलो का निवास ऊंचे क्षेत्रों में होता है और दो निवासों स्थानों के बीच दूरी अधिक होती है भीलो के गांव को पाल कहा जाता है उनके घर लकड़ी बॉस मिट्टी और खपरैल के बने होते हैं जो आकार में काफी विशाल और जो गौर होते हैं
रहन सहन⇛⇛⇛⇛
भील पुरुष धोती और बंडी पहनते हैं तथा सिर पर साफा बनते हैं भील स्त्रियां घाघरा चोली तथा ओढ़नी पहनती है स्त्री पुरुष दोनों में आभूषणों का प्रचलन है स्त्रियों में गोदना गोदवाना मुख्य रूप से प्रचलित है भील स्त्रियां अत्यधिक आभूषण पहनती है यह शाकाहारी और मांसाहारी दोनों है मक्का जौं ज्वार एवं डालें इन का प्रमुख भोजन है
सामाजिक व्यवस्था ⇛⇛⇛⇛
भील समाज पितृसत्तात्मक एवं पितृस्थानीय है समाज में भील भिलाला पटेलिया आधी वर्ग पाए जाते हैं भीलो का गांव भी एक महत्वपूर्ण सामाजिक इकाई होता है जिसमें वरिष्ठ जनों का अत्यधिक विशिष्ट स्थान होता है विधवा विवाह वर वधू मूल्य भी प्रचलित है भगोरिया हाट भीलो का आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व का मेला है जो फागुन माह में लगता है इनके उत्सव एवं नृत्य में भगोरिया, गौरी, घूमर ,कठपुतली आदि प्रसिद्ध है
अर्थव्यवस्था ⇛⇛⇛⇛
भील जनजाति अपनी आजीविका के लिए मुख्यता कृषि पर आधारित है किंतु संसाधनों की कमी के कारण यह कृषि के अतिरिक्त पशुपालन वनोपज संग्रह कृषि मजदूरी आदि भी करते हैं परंपरागत उत्सवों में अत्यधिक खर्च एवं सीमित आय के कारण भील अत्यधिक ऋण ग्रस्त है
अस्त्र शास्त्र ⇛⇛⇛⇛
धनुष बाण भीलों का परंपरागत शस्त्र है इसके अतिरिक्त के आक्रमण एवं सुरक्षा के लिए तलवार गुलेल आदि का भी प्रयोग करते हैं आर्थिक बदहाली के कारण भीलों के कुछ समूह लूटपाट भाटिया अपराधी आदि गतिविधियों में भी लिप्त हो गए हैं
धार्मिक जीवन ⇛⇛⇛⇛
भीलो का धर्म आत्मा वादी है इन के सबसे प्रमुख देवता राजापन्था है जानवरों में लोक घोड़े और सर्प की पूजा करते हैं हिंदू धर्म के प्रभाव के फलस्वरूप शंकर हनुमान और काली देवी की भी पूजा करने लगे इनमें पहाड़ बन पानी और फसलों के भी अलग अलग देवता है इनके द्वारा की गई कृषि चिमाता कहलाती है यह गोलघेघड़ा उत्सव मनाते हैं
भील जनजाति की उपजाति ⇛⇛⇛⇛
बरेला, रसियास भिलाला, वेगास, पटेलिया आदि भील जनजाति की प्रमुख उप जातियां हैं
भील जनजाति के प्रमुख पर्व ⇛⇛⇛⇛
गल, भगोरिया, चलवाणी, जातरा आदि प्रमुख भील जनजाति के पर्व है
भील जनजाति के प्रमुख नृत्य ⇛⇛⇛⇛
भगोरिया नृत्य, डोहा, बड़बा, धूमर नृत्य, गौरी नृत्य आदि भील जनजाति के प्रमुख नृत्य हैं
देश के स

💦मध्यप्रदेश के सर्वाधिक केला उत्पादन करने वाला जिला

                                  💨बुरहानपुर💨

⇒देश में बुरहानपुर एक प्रमुख केला उगाने वाला जिला है, क्योंकि जिले में 1,03,000 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से 16,000 हेक्टेयर केले की खेती के लिए समर्पित है। राज्य में कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं के विस्तार से भी फसल कटाई की संभावना कम हो गई है।
⇒म.प्र. में केला का कुल क्षेत्रफल लगभग 26.02 हजार , उत्पादन 1448.13 टन एवं उत्पादकता 55.65 टन हेक्टर प्रदेश में इसकी खेती बुरहानपुर, खरगौन, धार, बडवानी, शाजापुर, राजगढ आदि जिलों में प्रमुख रूप से की जाती है।
⇒बुरहानपुर मे केले की खेती लगभग 20200 हेक्टेयर क्षेत्र मे की जाती है उत्पादकता लगभग 700 क्विन्टल/हेक्टर है।मध्यप्रदेश में टपक सिंचाई द्वारा केले की खेती कर क्षेत्रफल 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।
केले के फल में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा पाई जाती है। केले के पौधों का उपयोग भिन्न भिन्न रूपों में किया जाता है, पके फलों से प्रसंस्करण द्वारा जूस, पावडर एवं फिग्स बनाते हैं। 
⇒कुपोषण एवं प्रोटीन की कमी से उत्पन्न विकारों को दूर करने में केला अनोखी भूमिका निभाता है।
⇔यह ताप्‍ती नदी के किनारे बसा है 
⇔ असीरगढ़ किले को दक्‍खन का दरवाजा नाम से जाना जाता था ।
⇔बुरहानपुर के दर्शनि‍क स्‍थल ,महल गुलआरा, शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा ,जामा मस्जिद ,असीरगढ़ राजा की  छतरीखूनी ,भण्‍डारा शाही हमाम दरगाए-ए-हकी़मी
⇒बुरहानपुर का खुनी भडारा अपनी मुगलकालीन  जल प्रदाय प्रणाली के लिये विश्‍व प्रसिद है  

      💦मध्य प्रदेश में  शहद का सबसे बड़ा उत्पादक जिला  

                                           💨मुरेना 💨

भारत में मधुमक्खी पालन का प्राचीन वेद और बौद्ध ग्रंथों में उल्लेख किया गया हैं। मध्य प्रदेश में मध्यपाषाण काल की शिला चित्रकारी में मधु संग्रह गतिविधियों को दर्शाया गया हैं। हालांकि भारत में मधुमक्खी पालन की वैज्ञानिक पद्धतियां १९वीं सदी के अंत में ही शुरू हुईं, पर मधुमक्खियों को पालना और उनके युद्ध में इस्तेमाल करने के अभिलेख १९वीं शताब्दी की शुरुआत से देखे गए हैं। भारतीय स्वतंत्रता के बाद, विभिन्न ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के माध्यम से मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहित किया गया। मधुमक्खी की पाँच प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं जो कि प्राकृतिक शहद और मोम उत्पादन के लिए व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।

मधुमक्खियों के प्रकार

व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण ऐसी पाच मधुमक्खीयों की प्रजातियां भारत में हैं

  • एपिस डोरसॅटा (रॉक बी)
  • एपिस सेराना इन्डिका (इंडियन हाइव बी)
  • एपिस फ्लोरिया (ड्वार्फ बी)
  • एपिस मेलिफेरा (यूरोपीय या इतालवी मधुमक्खी) और 

टेट्रागोनुला इरिडीपेनिस (डॅमर या स्टींगलेस बी)। एपिस डोरसॅटा मधुमक्खियां आक्रामक होती हैं और इनका पालन नहीं हो सकता। इसलिये जंगल से इनका शहद लिया जाता है। एपिस फ्लोरिया से शहद भी जंगल से लिया जात है क्योंकि ये घुमन्तु प्रजाति हैं और बहुत कम उपज देती हैं। समशीतोष्ण क्षेत्र की मूल निवासी एपिस सेराना और एपिस मेलिफेरा कृत्रिम मधुमक्खी बक्से में संवर्धन करने के लिए योग्य हैं। टेट्रागोनुला इरिडीपेनिस मधुमक्खियों का पालन किया जा सकता है और ये विभिन्न फसलों के परागण में महत्वपूर्ण कारक हैं लेकिन शहद की कम उपज देती हैं।

 मुरैना जिले के बारे मे 

⇒सबलगढ़ का किला मध्य प्रदेश के मोरेना जिले में है। इसे करोली के राजा गोपाल सिंह ने बनवाया।
⇒सिहोनिया कछवाहा राजपूतों की राजधानी थी। यह मध्य प्रदेश के मोरेना जिले में है। कछवाहा वंश की स्थापना 1115 से 1135 तक राज्य करने वाले राजा कृतिराज ने की।
मुरैना का प्राचीन नाम मयूर वन था जोकि महाभारत काल के समय बहुत प्रसिद्ध था।
⇒मुरैना में चंबल, कुंवारी, आसान, और सांक नदियां बहती हैं।
⇒मोर पक्षी की बहुतायत के कारण इसका नाम मुरैना पड़ा।
⇒मुरैना में काकड़ मंदिर स्थित है जिसका निर्माण कछवाहा वंश के राजा कीर्ति राज द्वारा किया गया।
⇒मुरैना में नागाजी का मेला (पोरसा) में लगता है।
⇒कैलारस में शासकीय चीनी मिल स्थित है।
⇒सास बहू अभिलेख अमोनिया वा चौसठ जोगिनी मंदिर मीता बलि स्थित है।
⇒राम प्रसाद बिस्मिल की याद में देश का पहला शहीद मंदिर बनाया गया है।
⇒नूरा बाग में गोना बेगम का मकबरा स्थित है।
⇒मध्यप्रदेश में सर्वाधिक सरसों का उत्पादन मुरैना में होता है।
⇒प्रदेश का न्यूनतम शिशु लिंगानुपात वाला जिला मुरैना है।

 प्रिय विवर्स एव पाठक मध्‍यप्रदेश मे हाल ही मे आये न्‍यूज और जानकारी पर आधारित यह छोटा सा पोस्‍ट आपको कैसे लगी कंमेट कर जरूर बतायेंं